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यमा॑दित्यासो अद्रुहः पा॒रं नय॑थ॒ मर्त्य॑म् । म॒घोनां॒ विश्वे॑षां सुदानवः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yam ādityāso adruhaḥ pāraṁ nayatha martyam | maghonāṁ viśveṣāṁ sudānavaḥ ||

पद पाठ

यम् । आ॒दि॒त्या॒सः॒ । अ॒द्रु॒हः॒ । पा॒रम् । नय॑थ । मर्त्य॑म् । म॒घोना॑म् । विश्वे॑षाम् । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ ॥ ८.१९.३४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:19» मन्त्र:34 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:35» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:34


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्रुहः) द्रोहरहित (सुदानवः) हे शोभनदाता (आदित्याः) आचार्य्यो ! आप (विश्वेषाम्) समस्त (मघोनाम्) धनवानों के मध्य (मर्त्यम्) जिस मनुष्य को (पारम्) कर्मों के पार (नयथ) ले जाते हैं, वही पूर्वोक्त फल पाता है ॥३४॥
भावार्थभाषाः - पूर्व सम्पूर्ण सूक्त में अग्निवाच्य ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना कही गई है, यहाँ आदित्य की चर्चा देखते हैं। इसका कारण यह है कि आदित्य नाम आचार्य का है। उनकी ही कृपा से सर्व कार्य सिद्ध हो सकता है, क्योंकि वे ज्ञान देते हैं, सन्मार्ग पर ले जाते हैं और ईश्वर की आज्ञाएँ समझाते हैं ॥३४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रुहः, आदित्यासः) हे किसी पर द्रोह न करनेवाले अदिति=दैत्यरहित विद्या के पुत्र सदृश विद्वानों ! (सुदानवः) सुन्दर दानवाले आप (यम्, मर्त्यम्) जिस मनुष्य को (पारम्, नयथ) विद्या के पार कर देते हैं, वह (विश्वेषाम्, मघोनाम्) सब धनिकों में श्रेष्ठ होता है ॥३४॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् पुरुष अनेक कलाओं को प्रकाशित कर स्वयं दैन्यरहित होकर प्रजाओं को अनेक विपत्तियों से पार कर सकता है अर्थात् पदार्थविद्यावेत्ता विद्वान् पुरुष कला-कौशलादि-निर्माण द्वारा स्वयं ऐश्वर्य्यसम्पन्न होता और प्रजाजनों को भी धनवान् बनाता है, इसलिये उचित है कि सब विद्वान् पदार्थविद्या द्वारा उन्नत हों ॥३४॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्त्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अद्रुहः=अद्रोग्धारः ! हे सुदानवः=शोभनदानदातारः ! हे आदित्यासः=आचार्य्याः ! विश्वेषाम्=सर्वेषाम्। मघोनाम्=धनवतां मध्ये। यं मर्त्यम्=मनुष्यम्। पारम्=कर्मणां समाप्तिम्। नयथ=प्रापयथ। स एव पूर्वोक्तं फलं प्राप्नोति ॥३४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रुहः, आदित्यासः) हे सर्वेषां मित्रभूता विद्वांसः ! यूयम् (सुदानवः) शोभनदानाः (यम्, मर्त्यम्) यं मनुष्यम् (पारम्, नयथ) विद्यायाः पारं कुरुथ सः (विश्वेषाम्, मघोनाम्) सर्वेषां धनवतां मध्ये धनिको भवति ॥३४॥